Mirza Ghalib’s Ghazals (part-II) : दिल ही तो है (Dil hi to hai)
दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आये क्यों ?
रोयेंगे हम हज़ार बार, कोई हमें सताये क्यों ?
संग = stone, ख़िश्त = brick
दैर नहीं, हरम नहीं, दर नहीं, आस्ताँ नहीं
बैठे हैं रेह्गुज़र पे हम, ग़ैर हमें उठाये क्यों ?
दैर = temple, हरम = mosque, दर = gate, आस्ताँ = abode
रेह्गुज़र = path/way
जब वो जमाल-ए-दिल-फ़रोज़, सूरत-ए-मेहेर-ए-नीम-रोज़
आप ही हो नज़ारा सोज़, पर्दे में मुँह छुपाये क्यों ?
जमाल = beauty, फ़रोज़ = shining/luminous, मेहेर = sun
नीम-रोज़ = mid day, नज़ारा-सोज़ = beautiful/worth seeing
क़ैद-ए-हयात-ओ-बन्द-ए-ग़म, अस्ल में दोनों एक हैं
मौत से पेहले आदमी ग़म से नजात पाये क्यों ?
हयात = life, बन्द-ए-ग़म = concealed/hidden sorrows,
नजात = release/liberation
दश्ना-ए-ग़म्ज़ा जाँ-सिताँ, नावक-ए-नाज़ बे-पनाह
तेरा ही अक़्स-ए-रुख़ सही, सामने तेरे आये क्यों ?
दश्ना = dagger, ग़म्ज़ा = amorous glance, जाँ-सिताँ = destroying life
नावक = a kind of arrow, अक़्स = image
हाँ वो नहीं ख़ुदा-परस्त, जाओ वो बे-वफ़ा सही
जिसको हो दीन-ओ-दिल ‘अज़ीज़, उसकी गली में जाये क्यों ?
परस्त = worshipper, दीन = religion/faith
“ग़ालिब”-ए-ख़स्ता के बग़ैर कौन से काम बंद हैं ?
रोइये ज़ार-ज़ार क्या, कीजिए हाय-हाय क्यों ?
ख़स्ता = sick/injured, ज़ार-ज़ार = bitterly
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